सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

क्या लाल सागर में 47 साल पुराना टैंकर फटने वाला है | 47 Year Old Tanker About to Explode in the Red Sea?


47 साल पुराना टैंक का परिचय | Introduction to 47 Year Old Tanks

2015 में यमन ने एक मिलियन बैरल तेल से भरे एक सुपर टैंकर वेसल को रेड सी यानी लाल सागर में छोड़ दिया था। अब 8 साल बाद संयुक्त राष्ट्र संघ यानी UN ने कहा है कि ये वेसल किसी भी समय या फट जाएगा या डूब जाएगा।



टैंक फटने पर क्या नुकसान होगा? (What Will Happen if the Tank Explodes?)

तेल समुद्र में फैला तो प्रदूषण 30 साल तक रहेगा।

इससे यमन समेत 4 देशों को काफी नुकसान होने की आशंका है।

UN ने अब आखिरी चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर तुरंत कोई एक्शन नहीं लिया गया तो इससे हुए नुकसान की भरपाई नामुमकिन होगी। तेल लीक होने के 2 हफ्तों बाद सऊदी, जिबूती और इरिट्रिया तक भी पहुंच जाएगा। समुद्र में फैले तेल की वजह से मछलियों की 1000 दुर्लभ प्रजातियां और 365 तरह के कोरल रीफ खत्म हो जाएंगे।

समुद्र के रास्ते जंग से प्रभावित यमन के इलाकों में UN जो मदद भेज रहा है, वो भी रुक जाएगी, जिससे 60 लाख लोगों की जिंदगी पर असर पड़ेगा।

स्टोरेज वेसल साफेर के विषय में जानकारी (About Storage Vessel Safer)

साफेर को 1976 में एक जापानी कंपनी हिटाची जेसोन ने बनाया था। ये वेसल 362 मीटर लंबा है और इसका वजन 4 लाख 6 हजार 640 टन है। साल 1988 में यमन की एक कंपनी ने इसे स्टोरेज शिप वेसल में बदल लिया था और इसमें तेल रखना शुरू कर दिया।

टैंकर के रेड सी में फसने का कारण (Reason for Tanker Getting Stuck in Red Sea)

साल 2015 में यमन में हूती विद्रोहियों और सऊदी के समर्थन वाली सरकार में गृह युद्ध छिड़ गया। जिसके बाद यमन के समुद्र तट वाला इलाका हूती विद्रोहियों के कब्जे में आ गया।

इलाका कब्जे में आते ही विद्रोहियों ने सबसे पहले सारी लोकल और इंटरनेशनल संस्थाओं के इलाके में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी। रख-रखाव के अभाव में खराब हो रहे साफेर को ठीक करने के लिए हूती विद्रोहियों ने UN को भी इजाजत नहीं दी।



अन्य रिपोर्टस के मुताबिक (According to Other Reports)

अक्टूबर 2019 में हॉम अखदार नाम की यमन की एक संस्था ने इस स्टोरेज वेसल को लेकर अपनी रिपोर्ट छापी। इसमें बताया गया कि इस वेसल से तेल लीक हो सकता है जिससे समुद्र में रहने वाले जीवों को खतरा है। इस रिपोर्ट के बाद UN ने दोनों पार्टियों को बातचीत के लिए एक टेबल पर बुलाया।

2020 में BBC ने रिपोर्ट किया कि स्टोरेज वेसल के इंजन रूम में समुद्र का पानी जा रहा है, जिससे शिप में धमाका हो सकता है। इसके बाद UN ने भी चेतावनी दी कि इसके फटने का खतरा है। तब से इसे लाल सागर का टाइम बम भी कहा जाता है।

यमन के हूती विद्रोह का प्रभाव टैंकर पर (The Impact of Yemen's Houthi Rebellion on the Tanker)

वर्ष 2011 में जब ट्यूनीशियाई और मिस्र के तानाशाहों को गिराने वाले अरब स्प्रिंग विरोध के हिस्से के रूप में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, तो हूती (Houthis), उस समय अपनी सैन्य जीत से आश्वस्त थे और सदाह में उन्हें जो समर्थन मिला, उसने आंदोलन का समर्थन किया।

राष्ट्रपति सालेह, (एक जायदी) जो 33 वर्षों तक सत्ता में थे, उन्होंने नवंबर 2011 में इस्तीफा दे दिया तथा अपने डिप्टी, अब्दराबुह मंसूर हादी, जो एक सऊदी समर्थित सुन्नी था, उसी को बागडोर सौंप दी।

सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के संरक्षण में यमन ने आंतरिक मतभेदों को हल करने के लिये एक राष्ट्रीय वार्ता शुरू की।

हूती इस संवाद का हिस्सा थे लेकिन वे हादी की संक्रमणकालीन सरकार (Transitional Government) के साथ ही इस संवाद से बाहर हो गए तथा यह दावा करते हुए कि प्रस्तावित संघीय समाधान, जो ज़ायदी-प्रभुत्व वाले उत्तर को दो भूमि-बंद प्रांतों में विभाजित करने की मांग करता था, का उद्देश्य आंदोलन को कमजोर करना था।

वे शीघ्र ही विद्रोह में पुन: शामिल हो गए। सालेह जिन्हें अंतरिम सरकार और उसके समर्थकों द्वारा दरकिनार कर दिया गया था। अपने पूर्व प्रतिद्वंद्वियों के साथ हाथ मिलाया और एक संयुक्त सैन्य अभियान शुरू किया।

जनवरी 2015 तक हूती-सालेह गठबंधन (Houthi-Saleh alliance) ने सना और उत्तरी यमन के अधिकांश हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसमें महत्त्वपूर्ण लाल सागर तट भी शामिल था।

यमन में हूती विद्रोहियों के तेज़ी से उदय ने सऊदी अरब में खतरे की घंटी बजा दी, जो कि उन्हें ईरानी प्रॉक्सी के रूप में देखता है।

सऊदी अरब ने मार्च 2015 में हूती विद्रोहियों के खिलाफ त्वरित जीत की उम्मीद में एक सैन्य अभियान लेकिन सऊदी अरब के हवाई हमले के बावजूद हूती विद्रोही पीछे नहीं हटे। शुरू किया था, ज़मीनी स्तर पर कोई प्रभावी सहयोगी नहीं होने और कोई विशिष्ट योजना न होने के कारण, सऊदी के नेतृत्व वाला अभियान बिना किसी ठोस परिणाम के समाप्त हो गया।

वर्ष 2019 में हूती विद्रोहियों ने दो सऊदी तेल प्रतिष्ठानों पर हमले का दावा किया था, जो कि देश के तेल उत्पादन के आधे हिस्से हेतु उत्तरदायी है (हूती विद्रोहियों के दावे को विशेषज्ञों और सरकारों द्वारा खंडित कर दिया गया था, जिन्होंने कहा कि विद्रोहियों के लिये यह हमला करना संभव नहीं था। अमेरिका ने इसके लिये ईरान को दोषी ठहराया था)।

हूती विद्रोहियों ने उत्तर में एक सरकार का गठन किया। युद्ध में सऊदी अरब और हूती दोनों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। जबकि सऊदी बम विस्फोटों में बड़ी संख्या में नागरिक मारे गए, हूती विद्रोहियों पर अधिकार समूहों और सरकारों द्वारा, सहायता को रोकने, घनी आबादी वाले क्षेत्रों में बलों को तैनात करने तथा नागरिकों व शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल का उपयोगप्रयोग करने का आरोप लगाया गया।

चिंता का विषय (Matter of Concern)

यमन रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोड़ने वाले

जलडमरूमध्य पर स्थित है, जिसके माध्यम से दुनिया के अधिकांश तेल शिपमेंट गुज़रते हैं।

यह अल-कायदा या आईएस से जुड़े-देश के हमलों के खतरे के कारण भी पश्चिम को चिंतित करता है -जो अस्थिरता को उत्पन्न करते हैं।

अमेरिका द्वारा विद्रोहियों को आतंकवादियों के रूप में सूचीबद्ध करने और छह साल से संघर्ष को कम करने के प्रयासों के बाद भी हूती विद्रोहियों ने राज्य पर सीमा पार हमले करता रहता है।

संघर्ष को शिया शासित ईरान और सुन्नी शासित सऊदी अरब के बीच क्षेत्रीय सत्ता संघर्ष के हिस्से के रूप में भी देखा जाता है।

------

By Sunaina

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सीरिया और सऊदी अरब का रिश्ता व इतिहास | The Relationship and History of Syria and Saudi Arabia

परिचय (Introduction) मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जल्द ही सऊदी और सीरिया के बीच भी कूटनीतिक संबंध बहाल हो सकते हैं। 11 साल पहले यह रिश्ते टूट गए थे। इससे जुड़ी एक और बड़ी खबर यह है कि अगर सीरिया और सऊदी के डिप्लोमैटिक रिलेशन री- इन्सटॉल हुए तो सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद और उनके मुल्क की 22 अरब देशों के ग्रुप यानी अरब लीग में वापसी भी सकती है। ईरान और सीरिया सऊदी अरब से रिश्ते (Iran and Syria Relations with Saudi Arabia) न्यूज एजेंसी 'रॉयटर्स' की रिपोर्ट के मुताबिक - ईरान और सऊदी अरब के बीच रिश्ते सुधरने के बाद सीरिया ने भी ऐसा करने का फैसला किया है। ऐंबैसी अप्रैल में ईद के बाद खुल सकती हैं। गल्फ डिप्लोमैट ने बताया कि ये फैसला सऊदी अरब और एक सीरियन इंटेलिजेंस ऑफिसर के बीच कई दौर की बातचीत के बाद लिया गया।  इस मामले में खास बात यह है कि जब ईरान और सऊदी अरब के डिप्लोमैटिक रिलेशन बहाल हुए तो चीन ने इसमें अहम रोल प्ले किया था। अमेरिका को इस बातचीत की भनक तक नहीं लगी। अब अगर सीरिया और सऊदी के रिलेशन बहाल होते हैं, तो गल्फ में अमेरिकी दबदबे को ये एक और बड़ा झटका होगा। बशर अल असद ...

अंजी ब्रिज केबल आधारित पुल | Anji Bridge Cable Stayed Bridge

  भारत का पहला केबल आधारित पुल  (India's first cable-stayed bridge) अंजी ब्रिज , देश का पहला केबल-स्टे रेलवे ब्रिज और उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक ( USBRL) परियोजना का हिस्सा है। अंजी नदी जम्मू के कटरा और रियासी जिले के बीच चिनाब नदी की एक सहायक नदी है। जम्मू-कश्मीर को शेष भारत से बारहमासी रेल कनेक्टिविटी के साथ जोड़ने के भारतीय रेलवे के लक्ष्य में अंजी पुल एक महत्वपूर्ण कड़ी है।   अंजी पुल पर बड़ी संख्या में सेंसर लगाए गए हैं ताकि संरचनात्मक स्वास्थ्य की नियमित रूप से निगरानी की जा सके। इसे भारी तूफान और 213 किलोमीटर प्रति घंटे तक की हवा की गति को संभालने के लिए डिजाइन किया गया है।   परियोजना का महत्व  (Importance of the project) इस परियोजना से क्षेत्र के भीतर और देश के बाकी हिस्सों के साथ बेहतर कनेक्टिविटी के माध्यम से जम्मू और कश्मीर राज्य का सामाजिक-आर्थिक विकास होने की उम्मीद है। इस परियोजना की परिकल्पना एक कुशल सभी मौसम परिवहन चैनल प्रदान करने के लिए की गई थी जो प्रतिकूल मौसम की स्थिति में कार्य कर सके और घाटी के भीतर और बाहर विभिन्न...

डोकलाम विवाद का विश्लेषण | Analysis of Doklam Dispute

भारत और भूटान के मध्य सहयोग संधि (Cooperation Treaty Between India and Bhutan) भारत और चीन की ज़मीनी सरहदों में घिरे भूटान ने 1949 के मित्रता और सहयोग संधि के बाद से भारत के साथ विशेष संबंध क़ायम रखे हैं। उधर चीन के साथ भूटान ने बग़ैर किसी राजनयिक संपर्क के भी तटस्थ रिश्ता बनाए रखा है। चीन की ओर से भूटान के कई इलाक़ों पर दावे किए जाते हैं। इनमें उत्तर की पासामलुंग और जाकारलुंग घाटी शामिल हैं, जो भूटान के लिए बेहद अहम हैं। पश्चिम दिशा में डोकलाम, ड्रामना और शाखटोई, याक चु और चारिथांग चु, सिंचुलुंगपा और लांगमार्पो घाटियों पर भी चीन अपना दावा ठोकता रहा है। ये इलाक़े चाराग़ाह के लिहाज़ से समृद्ध होने के साथ-साथ सामरिक रूप से भूटान और भारत-चीन के त्रिकोण (trijunction) पर स्थित हैं। ये क्षेत्र भारत के सिलिगुड़ी गलियारे के बेहद नज़दीक है। डोकलाम विवाद 2017 (Doklam Standoff 2017) 2017 में भूटान ने डोकलाम में चीन की ओर से बनाई जा रही सड़क का विरोध किया था। इसके समर्थन में भारत भी सामने आ गया था। भूटान और चीन के बीच विवाद की वजह से भारत के साथ भी तनातनी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। डोकलाम ट्राई जंक...